
रायबरेली के ऊंचाहार में हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीटकर हत्या का मामला अब एक राजनीतिक तूफान बन चुका है। शुक्रवार को जहां यूपी सरकार ने पीड़ित परिवार को मुआवज़ा देकर “सरकारी संवेदना” जताई, वहीं शनिवार को कांग्रेस ने “सड़क से सदन तक संघर्ष” का ऐलान कर दिया।
अजय राय को रोका गया, कांग्रेसियों की पुलिस से झड़प
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय राय हरिओम के परिवार से मिलने फतेहपुर रवाना होने वाले थे। लेकिन इससे पहले ही पुलिस ने कांग्रेस कार्यालय को छावनी में बदल डाला।
अजय राय को उनके आवास के बजाय पार्टी ऑफिस में पकड़ने की रणनीति बनी, लेकिन नेता जी चुपचाप भागकर पार्टी दफ्तर पहुंच गए।
जैसे ही वो बाहर निकलने लगे – पुलिस: “आप नहीं जा सकते।”
अजय राय: “क्यों? पीड़ित से मिलना भी गुनाह है क्या?”
इसके बाद कांग्रेस कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच नारेबाजी, धक्का-मुक्की और जमकर बहसबाज़ी हुई। अंततः अजय राय और अन्य नेताओं को हिरासत में ले लिया गया।
2 नोटिस, 1 इरादा: अजय राय को फतेहपुर जाने से रोकना
पुलिस ने अजय राय को दो नोटिस दिए:
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फतेहपुर DM की ओर से नोटिस, जिसमें साफ कहा गया कि “क़ानून-व्यवस्था बिगड़ सकती है।”
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लखनऊ पुलिस का नोटिस, जिसमें उन्हें बाहर निकलने से मना किया गया।

कांग्रेसियों ने इसे “तानाशाही” और “दलित विरोधी रवैया” करार दिया।
सरकारी जवाब: मंत्री असीम अरुण ने जताई संवेदना
दूसरी ओर, शनिवार को उत्तर प्रदेश के मंत्री असीम अरुण भी हरिओम के परिजनों से मिलने पहुंचे। उन्होंने पहले ही मुआवजे की चेक सौंप दी थी और अब कहा कि, “सरकार हर हाल में दोषियों को सज़ा दिलाएगी। अफवाह फैलाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।”
“फेसबुक पर स्टेटस लिखना मना नहीं है, लेकिन हरिओम के परिवार से मिलना? वो तो भारी सिक्योरिटी जोन है! नेताजी अब नोटिस पढ़कर ही जनसंपर्क करेंगे।”
सियासत गरम है, इंसाफ ठंडा ना पड़ जाए
हरिओम वाल्मीकि की दर्दनाक मौत के बाद जो राजनीतिक खींचतान सामने आई है, वो दिखाता है कि दलित मुद्दों पर अब सड़कों से सत्ता तक बहस छिड़ चुकी है।
जहां सरकार कार्रवाई और मुआवज़े की बात कर रही है, वहीं विपक्ष इसे “दलित विरोधी शासन” की मिसाल बता रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम में सबसे बड़ा सवाल यह है,“क्या इंसाफ सिर्फ चेक से पूरा हो जाएगा, या फिर दोषियों को वाकई सज़ा मिलेगी?”
भीड़ ने मारा, सरकार ने सहारा दिया – हरिओम केस में 13 लाख का इंसाफ !
